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आयुष्मान योग और सर्वार्थसिद्धि योग में मनेगा रक्षा पर्व
आज विशेष दुर्लभ ज्योतिषीय संयोग
इंदौर. आयुष्मान योग और सर्वार्थसिद्धि योग में रक्षा पर्व मनेगा. सोम पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र के साथ दुर्लभ योग पर्व की शोभा बढ़ाएंगे. भद्रा के बाद पूरे दिन रक्षा बंधन मनाएं.
यह बात भारद्वाज ज्योतिष व आध्यात्मिक शोध संस्थान के शोध निदेशक आचार्य पं. रामचन्द्र शर्मा वैदिक ने कही. आचार्य शर्मा ने बताया कि इस वर्ष रक्षा बंधन का पर्व विशेष दुर्लभ ज्योतिषीय योग संयोग में मनेगा. श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को सोमवार, श्रवण नक्षत्र, आयुष्मान व सर्वार्थसिद्धि योग में भद्रा काल के बाद रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाएगा.
धर्मशास्त्रीय मान्यता के अनुसार यह पर्व भद्रा रहित शुभ मुहूर्त में मनाने की परम्परा है. इस वर्ष 3 अगस्त सोमवार को प्रात: 9 बजकर 29 मिनिट तक भद्रा रहेगी. उसके बाद पूरे दिन शुभ मुहूर्त में बहिने अपने भाई की कलाई पर रक्षाबंधन कर सकेंगी.
शुभ मुहूर्त में पूजा कर इस मंत्र से करें रक्षाबंधन
श्रावण शुक्ल सोमवार को शुभ मुहूर्त में विधि विधान से रक्षा विधान कर सर्वप्रथम श्री गणेशजी व अपने इष्टदेव को रक्षाबंधन के निम्नांकित शुभ वेला में अपने भाई के दाहिने हाथ पर ऊँ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:, तेन मन्त्रेन बध्नामि रक्षे मा चल मा चल… इस मंत्र से रक्षाबंधन करें.
शुभ मुहूर्त
शुभ वेला,,प्रात: 9.31 से 10.54 तक, दोपहर चर वेला 2.11 से 3.50 तक, लाभ 3.50 से5.28 तक, शाम अमृत वेला 5.28 से 7.06 बजे तक. सामान्यत: प्रात: काल इसका मुख्य काल है.
ग्रह गोचरीय दुर्लभ संयोग
आज से 558 वर्ष पूर्व शनि,गुरु व चन्द्रमा की जो स्थिति थी वही आज भी बन रही है. जुलाई 1462 में देवराज गुरु व न्याय के देवता शनि दोनों उलटी चाल से चल रहे थे व चन्द्र भी मकर राशि में था. संयोग से सावन पूर्णिमा रक्षा पर्व पर तीन अगस्त को भी वही दुर्लभ संयोग बन रहा है.
राशि के अनुसार मनाएं रक्षाबंधन
आचार्य वैदिक ने बताया कि इस दुर्लभ ज्योतिषीय योग में अपनी अपनी राशि के अनुसार रक्षा बंधवाए तो आयु, आरोग्य व ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी. मेष व वृश्चिक राशि वाले लाल, मेहरून, कत्थई व गुलाबी रंग की, वृषभ व तुला- सफेद, चमकीली, दूधिया, गुलाबी रंग की, कर्क- सफेद, दूधिया, गुलाबी रंग की, सिंह- लाल, कत्थई, मेहरून व केशरिया रंग की, धनु व मीन राशि केशरिया, पीली, गुलाबी रंग की, कुम्भ व मीन राशि के नीली, मेंहन्दी, आसमानी रंग की रक्षा बंधवाए.
श्रावणी उपाकर्म का प्रमुख समय
आचार्य शर्मा ने बताया कि सावन पूर्णिमा को श्रावणी उपाकर्म का प्रमुख समय माना गया है. आज के दिन जीर्ण यग्योपवित का त्याग कर वैदिक विधि विधान से पूजित नया यग्योपवित धारण किया जाता है. इसमें तीर्थ प्रार्थना के साथ वर्ष भर जाने अनजाने में हुए पापों की निवृत्ति हेतु पवित्र नदी के किनारे प्रायस्चित स्वरूप हेमाद्रि व दशविध स्नान के साथ ऋषियों का पूजन, सूर्य उपस्थान, यग्योपवित पूजन कर शुभ मुहूर्त में नूतन जनेऊ धारण किया जाता है. यह स्वाध्याय पर्व भी है इससे वेद अध्ययन का भी सम्वन्ध जुड़ा है.
पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र में ही रक्षाबंधन क्यों?
आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि पूर्णचन्द्र पूर्णिमा को ही रहता है। पूर्णिमा के देवता भी चंद्रमा है जो आयु और आरोग्य कारक है। अतः रक्षाबंधन के लिए पुर्णिमा उचित तिथी है। इसी दिन दानवों पर विजय प्राप्ति हेतु इंद्राणी ने मंगलाचरण कर इंद्र के दाहिने हाथ मे रक्षा बंधन किया था। उस दिन श्रवण नक्षत्र ही था।इस के देवता श्री विष्णु भगवान है जो संसार के पालन कर्त्ता है जो आयु और आरोग्य के देवता है।इस प्रकार श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा रक्षाबंधन हेतु उपयुक्त ही है।